जवाब की तलाश...

पता नहीं क्यु? आज घडी धीमी गती से आगे बढ रही है। नहीं! शायद में समयसे तेज सोच रहा हूँ। हाँ.! ये हो सकता हैं। आखिर क्यु ना हो.! आज उससे मैं छे साल बाद मिलुंगा। इतना वक्त इंतजार किया पर आज अजीब सी बेचैनी है। समज नहीं पारा उसे मिलकर क्या बोलूंगा? क्या वो आज भी वैसे ही होगी जैसे पहले हुआ करती थी। क्या अब भी उसके चेहरे पर वो मासुमियत झलकती होगी? जो उसके मन की बातें चेहरे से पडी जाती थी! क्या आज भी जब मिलेगी तो क्या उसके गाल का इकलौता तिल मुझे उसकी ओर आकर्षित करेगा? क्या आज भी उसके बाल उतने ही लंबे होंगे जैसे पहले हुआ करते थे? क्या अब भी जब वो चेहरे पर आते होंगे तो वो उतने ही प्यार से उंगलियो से उसे कान के पिछे करती होगी?
      क्या आज वो आँखो मे काजल लगाकर आयेगी। जैसे वो पहले लगाती थी? क्या आज फिर से वो मेरे साथ पलक झपकने तक आँख मिलायेगी? शायद नहीं! क्यूकी अब तक उन आँखो को तकनेवाली आँखे आ गयी होगी। क्या आज वो मुझे देखकर दूर से ही भागकर गले लगायेगी? क्या वो बाहों में आकर कहेगी? I Miss You So Much.!
      क्या मैं उसे देखकर खुद को रोख पाऊंगा? क्या मैं उसके मासुम चेहरे को पढ पाऊंगा?क्या मैं उसके आँखो मे देखकर खुद को खोने से बचा पाऊंगा? जब वो गले लगेगी तो क्या मैं अपनी भावना वो को रोखकर सिर्फ दोस्त की तरह मिल पाऊंगा? क्या बरसो पहले जो मैं बोल न सका वो आज बोल पाऊंगा? क्या वो बरसो बाद फिर एक बार मुझे ना बोलकर जायेगी?
      सवाल बहुत सारे हैं। लेकिन जवाब, सिर्फ मिलकर पता चलेगा। अच्छा तो चलता हूँ, आप लोगों से बात करते करते पता ही नहीं चला। की उसे मिलने का समय हो गया।

-बुद्धभूषण जाधव

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