घर आ जाना..
वो रात कुछ खास थी| वो मुझे मिलने आनेवाली थी| मैनें उसे एक किताब के प्रकासन के कार्यक्रम मैं मिला था| फर्क बस इतना था, मैं वहाँ एक श्रोती के रूप मैं गया था वो वहाँ प्रमुख अतिथी के रूप मी आई थी|उम्र कि बात करे तो वो मुझसे दो साल छोटी हैं| पर आज वो शहर के मशहूर शायरो मैं से एक है| उसका मुझे मिलने आना कोई आम बात नहीं है| वो मुझसे मिलने आनेवाली है, ये सोचकर बदन मैं एक लहेर ही उठती हैं| वो मुझे मिलने आई तब मैं बार बार खुद को रोक रहा था| कही मैं कुछ गलत ना बोलू| वो मेरे सामने बैठी थी| मानो दुनिया की सारी खुबसुरती खुदा ने उसके झोली मैं डाल दी हो| मैं अपनी हि दुनिया मैं खो गया था|तबी उसने मेरे गाल पर हाथ रखकर, "हॅलो! कूछ बोलोगे या सिर्फ देखते हि रहोगे.!" मैनें शर्माकर सिर नीचे झुका लिया और गाल पर उसके हाथ के छुवन को महसुस करने लगा|
वो - सुनो!
मैं - कहिये!
वो - मुझे तुमने बुलाया और मैं कहुं?
मैं - माफ करना आपको सामने पाकर दिमाग कि सभी गतविदिया रूक गयी हैं!
वो - अच्छा और क्या क्या हो रहा हैं आपको
मैं - मुझे आपसे कूछ कहेना हैं!
वो - बोलो!
मैं - वो...वो... वो....वो आप क्या खावोगे!
वो(हसकर बोली) - तुम्हारी जान
मैं - अगर मौत बन के भी आजाओ,
फिर भी तुमसे मिलने की दुआ करेंगे.
वो - वाह क्या बात हैं!
मैं - एक और आपके लिये,
वो - इर्शाद..
मैं - खुदा ने जब तुझे बनाया होगा,
एक सुरूर सा उसके दिल मे आया होगा,
सोचा होगा क्या दूँगा तोहफे मे तुझे,
तब जाके उसने मुझे बनाया होगा…
वो - वाह क्या बात हैं!
इतना कहकर उसने मेरे सामने एक कागज रखा और बोली,"आपका Autograph मिलेगा!"
मैनें कागज पर लिखा -
अदालत इश्क़ की होगी ,
मुकदमा मोहब्बत पर चलेगा ,
गवाही मेरा दिल देगा
मुजरिम तेरा प्यार होगा
और वहाँ से निकालने लगा तो वो बोली," इतनी दुनिया भर की बातें करने से अच्छा होता इजहार-ए-इश्क कर देते."
फिर मैनें हिंमत जुटाकर कहा -
यूँ तो ज़ुबां पर ताले लग जाते हैं आपको सामने पाकर...!!
शायरी की ज़ुबां ना जाने क्या - क्या लिखवा देती हैं.....!!
अब वो बस मुस्कुराई और गले मिलकर कान में कहाँ- 'घर आ जाना मैनें अम्मी-अब्बू से बात कर ली हैं|'
मैं बस उसे देखता रह गया|
-बुद्धभूषण जाधव
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